अमेरिका की एक फेडरल अदालत ने टेक दिग्गज गूगल के खिलाफ चल रहे मामले में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। वाशिंगटन, डी.सी. की अदालत के जज अमित मेहता ने गूगल को एक ‘अवैध एकाधिकार’ (illegal monopoly) करार देते हुए कंपनी के खोज इंजन व्यवसाय में बड़े बदलाव का आदेश दिया है। हालांकि, जज ने अमेरिकी सरकार की उस मांग को ठुकरा दिया, जिसमें गूगल को तोड़ने और उसके क्रोम ब्राउज़र जैसे प्रमुख उत्पादों की बिक्री का आदेश देने की बात कही गई थी।
यह फैसला उस समय आया है जब कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) में तेजी से हो रहे बदलावों ने पूरे टेक उद्योग की दिशा बदल दी है। चैटजीपीटी और पर्प्लेक्सिटी जैसी कंपनियों के ‘एंसर एंजन’ अब गूगल की उस स्थिति को चुनौती दे रहे हैं, जिसके तहत वह लंबे समय से इंटरनेट का मुख्य प्रवेश द्वार रहा है।
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क्या था पूरा मामला?
यह मामला लगभग पांच साल पुराना है, जिसे पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के प्रशासन के दौरान अमेरिकी न्याय विभाग ने दायर किया था और राष्ट्रपति जो बाइडेन के कार्यकाल में भी यह जारी रहा। सरकार का आरोप था कि गूगल ने अपने खोज इंजन के लिए स्मार्टफोन, कंप्यूटर और अन्य उपकरणों पर ‘डिफॉल्ट’ की स्थिति सुनिश्चित करने के लिए अरबों डॉलर के समझौते किए, जिससे प्रतिस्पर्धा खत्म हो गई और कंपनी का एक अवैध एकाधिकार कायम हो गया।
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जज ने क्या कहा?
226 पन्नों के अपने फैसले में जज मेहता ने कहा कि गूगल ने वास्तव में एक अवैध एकाधिकार बनाया है। हालांकि, उन्होंने यह भी माना कि जेनरेटिव AI के कारण उद्योग में जो नई प्रतिस्पर्धा और नवाचार शुरू हुआ है, उसने इस मामले में राहत (remedies) के तरीके को भी बदल दिया है।
जज ने लिखा, “आम मामलों में अदालत का काम ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर विवाद सुलझाना होता है, लेकिन यहां अदालत से कहा जा रहा है कि वह क्रिस्टल बॉल में देखे और भविष्य की ओर देखे। यह exactly एक जज का काम नहीं है।”
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क्या बदलाव होंगे? जज के आदेश के मुख्य बिंदु:
- नए प्रतिबंध: जज ने गूगल पर कुछ ऐसे तरीकों पर रोक लगा दी है, जिनका इस्तेमाल कंपनी अपने खोज इंजन और अन्य सेवाओं पर ट्रैफिक लाने के लिए करती थी। अब गूगल उन अनुबंधों पर बातचीत नहीं कर पाएगा जो उसके सर्च इंजन, जेमिनी AI ऐप, Android के लिए प्ले स्टोर और वर्चुअल असिस्टेंट को स्मार्टफोन और कंप्यूटर पर एक्सक्लूसिव स्थिति देते हैं।
- डिफॉल्ट डील पर रोक नहीं: हालांकि, जज ने उन अरबों डॉलर की डिफॉल्ट डील पर पूरी तरह से रोक लगाने से इनकार कर दिया, जो गूगल सालाना करता है। जज ने माना कि ये समझौते ही एकाधिकार का मुख्य कारण थे, लेकिन उनका मानना था कि भविष्य में इन पर पूरी तरह से रोक लगाना नुकसानदेह होगा। उन्होंने कहा कि इससे फायरफॉक्स जैसे छोटे सर्च इंजनों को भी नुकसान होगा, जो गूगल के इन्हीं अनुबंधों से राजस्व कमाते हैं।
- क्रोम ब्राउज़र की बिक्री नहीं: अमेरिकी सरकार की यह मांग कि गूगल को अपना लोकप्रिय क्रोम ब्राउज़र बेचने के लिए मजबूर किया जाए, जज ने इसे खारिज कर दिया। जज ने कहा कि इसके लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं कि क्रोम ब्राउज़र गूगल के खोज एकाधिकार का एक अनिवार्य हिस्सा है। उन्होंने इस कदम को “अव्यवहारिक और अत्यधिक जोखिम भरा” बताया। दिलचस्प बात यह है कि पर्प्लेक्सिटी ने क्रोम को खरीदने के लिए 34.5 अरब डॉलर का अनसोलिसिटेड ऑफर दिया था, जबकि चैटजीपीटी की मालिक ओपनएआई ने भी इसमें दिलचस्पी दिखाई थी।
- डेटा शेयरिंग: जज ने गूगल को अपने सर्च डेटा का एक हिस्सा DuckDuckGo, Bing जैसे प्रतिस्पर्धियों के साथ साझा करने का आदेश दिया है। इससे एक निष्पक्ष और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। हालांकि, जज ने न्याय विभाग की मांग को संकुचित करते हुए गूगल की सर्च इंडेक्स और क्वेरी हिस्ट्री तक पहुंच सीमित कर दी है।
- क्या होगा असर?
- यह फैसला न केवल गूगल, बल्कि पूरे टेक उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित होगा। जज ने माना कि AI की दुनिया में तेजी से बदलाव हो रहे हैं और नई प्रतिस्पर्धा पैदा हो रही है, जो पहले से ही गूगल की ताकत को चुनौती दे रही है। इसलिए, कंपनी को तोड़ने जैसा कठोर कदम उठाने के बजाय, उसके व्यवसाय के तरीकों में बदलाव का आदेश देना ही पर्याप्त होगा।
गूगल ने हमेशा इस मामले का बचाव करते हुए कहा था कि उसकी सफलता उसके बेहतर उत्पादों की वजह से है, न कि किसी गलत तरीके से। कंपनी का मानना है कि यह मामला शुरू ही नहीं होना चाहिए था।
अदालत का यह फैसला टेक कंपनियों पर सरकार की बढ़ती नजर और एकाधिकार विरोधी मामलों में एक नजीर बनेगा। यह दिखाता है कि कैसे अदालतें जटिल तकनीकी मामलों में संतुलन बनाने की कोशिश करती हैं—नए नवाचारों को प्रोत्साहित करते हुए एकाधिकार की शक्ति को भी नियंत्रित करना। भविष्य में, यह फैसला दुनिया भर में टेक कंपनियों के regulation के तरीके को भी प्रभावित करेगा।