सुलह के माध्यम से अंतिम रूप दिया गया यह समझौता, जेएनपीए और वीपीपीएल के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक श्री उन्मेश शरद वाघ, आईआरएस और पीएसए इंटरनेशनल के क्षेत्रीय सीईओ – यूरोमेड और मेसा, श्री विन्सेंट एन्ग की उपस्थिति में, साथ ही पीएसए इंडिया, पीएसए मुंबई और जेएनपीए के अधिकारियों के साथ हस्ताक्षरित किया गया। जेएनपीए के एक विज्ञप्ति में इस बात पर जोर दिया गया कि इस समझौते के साथ, परियोजना के लिए अथक प्रगति की यात्रा का मार्ग पूरी तरह से स्पष्ट हो गया है।
यह ऐतिहासिक कदम न केवल एक वैश्विक साझेदार के साथ सहयोग को मजबूत करता है, बल्कि भारत के बंदरगाह क्षेत्र में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) की सफलता के बारे में एक सशक्त संदेश भी देता है। पीपीपी मॉडल के तहत 1.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर के सबसे बड़े प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के साथ — जो अब तक सिंगापुर द्वारा भारत में किया गया सबसे बड़ा निवेश भी है — यह समझौता निवेशकों के विश्वास को बढ़ाता है, निवेश जलवायु को बेहतर बनाता है और परियोजना की निर्बाध प्रगति सुनिश्चित करता है।
विज्ञप्ति में यह भी कहा गया कि यह भारत-सिंगापुर द्विपक्षीय संबंधों को और गहरा करता है, जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में व्यापार, कनेक्टिविटी और स्थिरता में साझी प्राथमिकताओं को रेखांकित करता है।
जैसा कि पहले बताया गया था, प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी और सिंगापुर के प्रधान मंत्री श्री लॉरेंस वोंग ने पिछले हफ्ते जेएन पोर्ट पर बीएमसीटी चरण-दो का वर्चुअल उद्घाटन किया, जिससे इसकी वार्षिक हैंडलिंग क्षमता दोगुनी होकर 4.8 मिलियन टीईयूएस हो गई और यह भारत का सबसे बड़ा कंटेनर टर्मिनल बन गया। इसके अलावा, 10 मिलियन टीईयूएस से अधिक की क्षमता के साथ जेएन पोर्ट भारत का सबसे बड़ा कंटेनर बंदरगाह बन गया।
एक नए युग की शुरुआत: बीएमसीटी समझौता और भारत के बंदरगाह विकास का भविष्य
यह केवल एक समझौता नहीं है, बल्कि भारत के बुनियादी ढांचे के विकास और वैश्विक सहयोग में एक नए अध्याय का प्रतीक है। जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह प्राधिकरण (JNPA) और PSA मुंबई के बीच हुआ यह पूरक समझौता, सिर्फ कागजात पर दस्तखत भर नहीं है। यह एक साझा विश्वास, सामूहिक उद्देश्य और एक मजबूत आर्थिक भविष्य के निर्माण की प्रतिबद्धता है। इसके पीछे वह सोच है जो ‘आत्मनिर्भर भारत’ को ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना के साथ जोड़ती है, यह दर्शाती है कि आत्मनिर्भरता का मतलब दुनिया से अलग-थलग होना नहीं, बल्कि वैश्विक साझेदारों के साथ मजबूती से जुड़कर अपनी क्षमताओं को बढ़ाना है।
इस समझौते की सबसे खास बात यह है कि यह सुलह के माध्यम से हासिल किया गया। यह इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि जब दो पक्ष एक सकारात्मक नतीजे के लिए प्रतिबद्ध हों, तो किसी भी मतभेद को सहयोग और बातचीत से सुलझाया जा सकता है। श्री उन्मेश शरद वाघ और श्री विन्सेंट एन्ग की मौजूदगी में हुए इस समझौते ने न केवल एक व्यावसायिक करार पर मुहर लगाई, बल्कि एक ऐसे रिश्ते की नींव रखी जो पारस्परिक सम्मान और साझा समृद्धि पर आधारित है।
भारत के बंदरगाह क्षेत्र में यह एक मील का पत्थर साबित होगा। सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल की सफलता की यह एक जबरदस्त मिसाल है। अक्सर बुनियादी ढांचे के बड़े प्रोजेक्ट्स में निजी निवेश को लेकर चिंताएं रहती हैं, लेकिन यह समझौता उन सभी आशंकाओं को दूर करता है। 1.3 अरब अमेरिकी डॉलर का यह निवेश, जो भारत में सिंगापुर का अब तक का सबसे बड़ा निवेश है, एक स्पष्ट संदेश देता है: भारत निवेश के लिहाज से एक पूरी तरह से सुरक्षित, विश्वसनीय और लाभप्रद गंतव्य है। यह देश में निवेश के माहौल को और बेहतर बनाएगा और दुनिया भर के अन्य निवेशकों के लिए एक सकारात्मक उदाहरण पेश करेगा।
इसके आर्थिक और रणनीतिक फायदों को देखें तो इसके तीन मुख्य पहलू सामने आते हैं:
पहला, रोजगार और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा: बीएमसीटी का विस्तार सीधे तौर पर हजारों लोगों को रोजगार देगा, चाहे वह सीधे टर्मिनल पर हो या फिर लॉजिस्टिक्स, ट्रांसपोर्ट और सप्लाई चेन से जुड़े सेक्टरों में। इससे मुंबई और महाराष्ट्र की अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी।
दूसरा, व्यापार की सुगमता: 4.8 मिलियन TEUs की क्षमता वाला यह टर्मिनल भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का एक प्रमुख केंद्र बनेगा। जहाजों के प्रतीक्षा समय में कमी आएगी, कार्गो हैंडलिंग की दक्षता बढ़ेगी और निर्यातकों-आयातकों की लागत में कमी आएगी, जिससे भारतीय उत्पादों की वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा क्षमता बढ़ेगी।
तीसरा, रणनीतिक कनेक्टिविटी: JNPA अब 10 मिलियन TEUs की क्षमता के साथ भारत का सबसे बड़ा कंटेनर बंदरगाह बन गया है। यह न केवल भारत बल्कि पूरे दक्षिण एशिया और हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए एक प्रमुख लॉजिस्टिक्स हब के रूप में उभरेगा। यह ‘सागर’ (Security and Growth for All in the Region) की भारत की विजन को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
भारत और सिंगापुर के बीच रिश्तों को यह समझौता एक नई ऊंचाई देगा। दोनों देश लंबे समय से व्यापार, रक्षा और सांस्कृतिक संबंधों के जरिए जुड़े हुए हैं। यह परियोजना इन संबंधों में एक नई व्यावहारिक गहराई लाती है। यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता, समृद्धि और कनेक्टिविटी के प्रति हमारे साझे संकल्प को दर्शाती है। जैसा कि विज्ञप्ति में कहा गया, यह साझी प्राथमिकताओं को रेखांकित करती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सिंगापुर के प्रधानमंत्री लॉरेंस वोंग द्वारा बीएमसीटी चरण-दो के वर्चुअल उद्घाटन ने इस साझेदारी के लिए सबसे ऊंचा राजनीतिक समर्थन दिखाया। यह दर्शाता है कि यह परियोजना सिर्फ एक व्यावसायिक उद्यम नहीं है, बल्कि दोनों देशों की सरकारों की एक रणनीतिक प्राथमिकता है।
अंत में, कहा जा सकता है कि जेएनपीए और पीएसए मुंबई के बीच यह समझौता सिर्फ एक बंदरगाह टर्मिनल की रियायत अवधि को बढ़ाने से कहीं आगे की बात है। यह भारत की विकास यात्रा, उसकी आर्थिक महत्वाकांक्षाओं और ‘विकसित भारत’ के सपने को साकार करने की दिशा में एक सशक्त कदम है। यह विश्वास पैदा करता है कि सही नीतियों, स्पष्ट इरादों और वैश्विक सहयोग के बल पर भारत न केवल दुनिया की अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होगा, बल्कि वैश्विक विकास का एक प्रमुख इंजन भी बनेगा। यह समझौता प्रगति, साझेदारी और समृद्धि की उसी नई कहानी का हिस्सा है, जिसे भारत लिख रहा है।